Wednesday, December 21, 2011

चाँद की चांदनी सतरंगी दिख रही है
पत्तों की सरसराहट गुफ्तगू कर रही है
हवाओं में नशीली ठंडक बह रही है
सुना है सभी ने की तुम आ रहे हो

आँखों को काजल लगाने का मन है
हाथों को कंगन खनकाने का मन है
पायल रुनझुन रुनझुन गाये जा रही है
सुना है इन सभी ने की तुम आ रहे हो

होठों की मुस्कान आज छुपाये नहीं छुपती
पलकों से शर्म हटाये नहीं हटती
सारे आलम में मदहोशी छा रही है
जब से सुना है की तुम आ रहे हो

Wednesday, December 14, 2011

खामोश सा मंज़र है आज
तन्हा अकेली बैठी हूँ मैं
दिल में तेरी यादें हैं बस
और आँखों में उनकी निशानी

क्यों वक़्त बेवक्त खो जाती हूँ
तुझसे ही हूँ मैं
तुझमे गम हो जाती हूँ
दुनिया बाकी झूठी लगती है

तेरे बिना कुछ कमी सी लगती है
मेरी ही धड़कन अधूरी सी लगती है
सोचा था जी लेंगे हम भी तेरे बिन
उस दिन से ज़िन्दगी ही थमी सी लगती है

हंसती अब भी हूँ मैं
पर खिलखिलाती अब नहीं
आँखों में काजल अब भी है
पर शरारत चली गयी

हर बात जो तुझसे कह लिया करती थी
इस दिल में सिमट कर रह गयी
तुम शायद पढ़ लो कहीं से
इसलिए अब ये कविता बन गयी

Monday, December 12, 2011

दिल में जो हल्का दर्द उठा है
वो तुम्हे भी है मुझे भी
आंसू जो किसी बात पर छलके हैं
वो तेरे भी हैं मेरे भी

बात एक होठों पर पर आ ठहर गयी है
वो सुनी तू ने भी है मैंने भी
अनजान से इस रिश्ते को न जाने क्या कहते हैं
यही सवाल तेरे ज़हन में है मेरे भी

भूल सकती नहीं वो रात कभी
जब दिल पहली बार इस तरह धड़का था
खामोश से समंदर को जैसे
चांदनी रात की लहरों ने आ जकड़ा था

आँखें जो मुस्कुराती हैं मेरी
वो तेरी होठों की मुस्कान का आइना है
तेरी ख़ुशी से है हर ख़ुशी मेरी
कहते हैं मोहब्बत जिसे तुझे भी है मुझे भी

Tuesday, December 6, 2011

राहों में अकेले खड़े यूँ ही
महसूस इसी बात को करती हूँ
तन्हा भले दिखती नहीं मैं
पर तन्हाइयों में सिमटी खड़ी हूँ

तेरा साथ न होने से आज
मैं तिनकों सी बिखरी पड़ी हूँ
कुछ कहती नहीं कभी किसी से
पर तेरे नाम से जीती हूँ

तुमसे करी थी जो बातें
तितली के रंगों जैसी लगती हैं
तुमसे रूठ कर गुज़ारे लम्हे
अँधेरी रातों जैसे लगते हैं

शिकवे भी हैं तुमसे, शिकायतें भी
हज़ारों आंसू देने की तकलीफें भी
फिर भी क्यों खलता है दिल को खालीपन
क्यों लगता है तुझ से अब भी ये अपनापन

यादें भी तुमसे हैं, हंसी भी
प्यार करने की हर ख़ुशी भी
पर क्यों अपनी मोहब्बत अधूरी सी है
तेरे मेरे बीच क्यों मीलों की दूरी सी है