Sunday, March 28, 2010

क्या तुम्हे एहसास है की तुमको पाकर खुद को भूल गयी थी मैं
तुम्हारे रंग में कुछ इस तरह रंग गयी थी मैं
सिमट गयी थी पूरी दुनिया तुम तक मेरी
तुम्हारी बातों में कुछ इसी तरह से खो गयी थी मैं

क्या तुम्हे एहसास है की मैंने अपने आँचल में सिर्फ तुम्हारे ख्वाब संजोये थे
सपनो की दुनिया में बस इसी तरह सोई थी मैं
बस एक ही तमन्ना थी इस दिल में
की तुम्हारे सारे ख्वाब पूरे कर देती

खबर तक न लगी मुझे कब तुम अकेला कर गए
हज़ार वादे कर के तुम क्यों ऐसे दगा दे गए
ज़िन्दगी इतनी खाली तो कभी नहीं जान पड़ती थी
सावन में सारे फूल पतझड़ से मुरझा गए

अब जब कुछ बाकी नहीं बचा है तुम्हे देने को
तो तुम क्यों मुझसे मेरी यादें मांग रहे हो
ज़िन्दगी जीने का आखिरी बहाना मांग रहे हो
अब सिर्फ इनमे ही तो बस्ती है baatein तुम्हारी 

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