Saturday, October 23, 2010

आज फिर वही चाँद घिर आया है
फिर वही रात का अँधेरा छाया है
कल फिर वो ही सुबह आएगी
रोज़ की तरह सुनहरी धुप खिल जाएगी

सब पहले जैसा है आज भी
मगर फिर भी कुछ अलग है
मन में अनजानी खलिश है
आँखों में हलकी सी नमी है

रात भर उनसे मिलने की तमन्ना की
जब वो आये तो सारे सवाल आँखों में ही रुक गए
किस्मत बेहद कठिन है मेरी जानती हूँ मैं
बस आज एक करिश्मा देख लेना चाहती हूँ

जिसकी मोहब्बत में सब कुछ भुलाये बैठी हूँ
एक पल के लिए उन्हें इस तरह पाना चाहती हूँ
कि फिर कुछ और पाने कि तमन्ना न रहे
उनकी ही बाहों में ज़िन्दगी गुज़ार देना चाहती हूँ

Wednesday, September 22, 2010

दिल की बात होंठों पर न लाने की शिकायत है उन्हें
हमारी आँखों को वो कभी आईना कहा करते थे
हमारी खामोश निगाहों से मिलता है उनके दिल को सुकून
भले ही ये आंसू छुपके से गिरते जाये

Wednesday, August 25, 2010

क्यों आते जाते कोई मेरे दिल का हाल पूछता है
अब तो आलम ये है कि हाल-ए-दिल भी अनजान मालूम होता है

बरसों से जो धड़कता आया उनकी एक आरज़ू पर
आज उसका एक पल और धड़कना बेसबब जान होता है

लोगों की हमने कभी फ़िक्र कहाँ करी थी
पर एक उन्हें ही मेरे सिवा ये सारा जहां नज़र आया है

भीड़ में मुस्कुराने को वो अपनी तन्हाई का नाम देते हैं
हमने तो खुद को एक वीराने रेगिस्तान में पाया है

तिल तिल कर संजोये थे जो सपने अपने आँगन में
आज उन्ही पर किसी को अपना घर बनाते पाया है

वो जानते थे की वो मेरी हर मन्नत में हैं वो शामिल
फिर भी उन्होंने किसी और को अपनी दुआ बनाया है

Saturday, August 21, 2010

I had so much to talk to you
So much to complain, so much to ask
I had promised myself i will do all the talking
and then suddenly...

I got lost in those mesmerizing eyes
I could see your heart straight into the depth
And No my questions were not yet answered
But the love which flowed for me left me spell bounded

I resisted from falling into those eyes
but that smoothness left my efforts in vain
that warmth of your arms wrapped around me
melted away all my resistance

That moment seemed to be perfect
It seemed like the ultimate eternity
I wanted the time to stop flying
To be freezed like that forever...

Friday, August 20, 2010

आज सब बहुत धुन्दला नज़र आ रहा है
पता नहीं ये आंसू हैं या फिर बारिश का पानी

फीके पड़ रहे हैं तेरे वादे सारे
तू वाकई बदल गया है या है मुझे कोई भ्रम

जाने क्यों धुंधली पड़ गयी हैं सारी बातें
तेरी मेरी हसीन मुलाकातें

वक़्त ने कोई करवट ली है
या है ये पल दो पल का वेहम

और अगर कहीं किस्मत मेरी चंचल ही निकले
तेरे मुझसे किये सारे वादे झूठे ही निकले

तो आज उसी धुंद की तनहाइयों में खो जाना चाहती हूँ
तेरे प्यार के छल से बहुत दूर हो जाना चाहती हूँ

Monday, August 16, 2010

एक छोटा सा सपना ले कर जी रही थी मैं
पत्थर की ठोकर से वो भी टूट गया
उस सपने में बसाया था छोटा सा जहाँ
कांच की तरह वो भी टूटकर बिखर गया

बहुत ज़ालिम होती है दुनिया भी
किसी और को मुस्कुराता नहीं देख पाती
किसी के घर में लौ जलती देख
जल की गगरी भर भर लाती

बड़ी मशक्कत के बाद समेटी थी
जो मुट्ठी भर खुशियाँ
वो हाथों से सारी फिसल गयी
खामोश खड़ी मैं बिखर गयी

क्या ज़िन्दगी इसी को कहते हैं?
लोगों के फैसलों पर हम सांस लेते हैं

Sunday, August 15, 2010

चुपके चुपके तिरछी निगाहों से
रह रह कर उसको ही तक रही थी मैं
उसके नैनो में नैन डालकर
ख़ामोशी में भी बातें कर रही थी

उसकी आँखें अपनी तनहाइयों की
एक अलग ही दास्ताँ कह रही थी
वो मुस्कुरा रही थी
पर चूर चूर हो कर रो रही थी

उन आंसुओं के समंदर में
सब कुछ धुन्दला जान पड़ रहा था
वो सौ कहानी बताकर भी
किसी एक कहानी में खो रही थी

न जाने कितना दर्द छुपा था
उस मासूम चेहरे के पीछे
न जाने कितनी ही शिकायतें
तैर रही थी उन आँखों में

उन आँखों से एकाएक वो आंसुओं का समंदर बह निकला
अचानक चौंक गयी मैं जब कुछ गीलापन लगा गालों पर
फिर समझ आया की आईने में
अपना ही प्रतिबिम्ब देख रही थी मैं 

Saturday, August 14, 2010

आज रात खिड़की पर बैठी मैं
गुमसुम खोयी हुई सी
दूर गगन में चाँद को ताक रही थी
उसकी सफ़ेद चांदनी को खाली बैठे निहार रही थी

कितनी खूबसूरत है ये चाँद की निर्मल छाया
जो अभी अभी मेरे चेहरे को चूम गयी है
कितनी पावन है इस चांदनी की ठंडक
जो बारिश की तरह मुझ पर बरस रही है

काली घनेरी रात में चाँद की ये चांदनी
जैसे रात के अँधेरे में जुगनू फैलाते रौशनी
 माना की मेरे मन में भी हैं कई अंधियारे कोने
पर इसी चाँद से ले कर एक ज्योति मैं भी जला लूं

आज पूर्णिमा की रात आ ही गयी है
तो अपने घर में भी मैं दिए जला लूं
दुःख तो हैं कदम कदम पर जीवन में
इन दुखों के बीच थोड़ी खुशियाँ मना लूं

Friday, August 13, 2010



Kuch Panktiyaan likh  dene par 
tum mujhe shayar na samajhna
abhi to bas shuru hi hua hai safar, dil ka kalam ke sath
tu kahin ise dillagi na samajhna


pata nahin kyon lag gaya is kalam ka nasha
nashe ka to main kabhi bhi aadi na tha
jab chad hi gaya hai mujhe
to tu kahin mujhe sharabi na samjhna


kehte hain ghazal bhram hoti hai
samne reh kar tu ise tod na dena
tu sath hoti hai to ghazal apne aap banti hai
meri kalpanao ki udaan apne aap banti hai


tu yunhi sath rehna hamesha mere
ho gar ye khwab to mujhe uthne na dena

Thursday, August 12, 2010

कितनी ही बातें करी थी हमने
वादे कितने करे थे एक दुसरे से
सारे आज फिर आँखों के सामने तैर गए
बरसों से रोक रखे थे जो आंसू पलकों पर आ कर ठहर गए

कभी ऐसा वक़्त भी आएगा ज़िन्दगी का
सोचा नहीं था तू इतना दूर चला जायेगा
मैं तनहा खड़ी रह जाऊँगी
मेरे सामने किसी और का तू हो जायेगा

आज जब बरसों के बाद मिला है तू
आंसू और ख़ुशी में एक तूफ़ान से छिड़ा है
कौन पहले बरसे कुछ समझ न आये
दोनों ने ही इस पल का सदियों इंतज़ार किया है

जी करता है एक आज बस कोई
तेरी मेरी मजबूरी न रहे
करे दिल खोल के बात हम
मेरे दिल की तेरे दिल से दूरी न रहे

कल फिर चले जाना है तुम को अजनबी रास्ते
आज जो साथ हो तो मेरे गमो को अपना सहारा दे जाओ
कौन जाने अब किस मोड़ पर मिलो तुम आगे
उस मोड़ तक सांसें लेने का बहाना दे जाओ

Wednesday, August 11, 2010

Dedicated to Maa...

बचपन से ही एक खुशबू को जाना है
माँ के आँचल को बहुत करीब से पहचाना है
जिसने हर शाम मेरे माथे को पोंछा
और गर्मी की रातों को पंखा झला

माँ की ममता भी बेमिसाल होती है
खुद थके होने पर भी मुझे सुला कर सोती है
मेरे सपनों में वो न जाने कहाँ से परियों को ले कर आती थी
आँख बंद करते ही दूर देस की सैर कराती थी

मेरी एक आहट पर वो दौड़ी आती थी
सब कुछ छोड़ कर मेरी देखरेख में लग जाती
मेरी फ़िक्र करने में उसे अपना ध्यान न रहता
कैसे कोई भूल सकता है ममता की मूरत का ऐसा चेहरा

आज जब मैं थोड़ी इस आँचल के बाहर कदम रख चली हूँ
थोड़ी लडखडाती थोड़ी कंपकपाती बड़ चली हूँ
फिर भी जब कभी दुनिया से मुझे डर लगता है
सिर्फ एक उसी आँचल में मुझे आज भी घर मिलता है

Tuesday, August 10, 2010

चुप रह कर भी कितना कुछ बोलती हैं
तेरी आँखें ही दिल के सारे राज़ खोलती हैं
कोई कहता है नाराज़ है तू मुझसे
तेरी आँखें सारी ख़ामोशी तोड़ती हैं


तेरी आँखों का सूनापन हो
या तेरे होंठो पर फीकी मुस्कान 
तेरी हर सांस में खालीपन
मैं हर पल महसूस करता हूँ

माना तुमको हमसे है शिकवे हजारों
पर रूठ कर चले न जाना तुम
पास रह कर सारी शिकायतें करना
हो न जाना कभी नज़रों से गुम

तुम कहती हो मुझे बेवफा तो वो ही सही
हमने वफ़ा हर उस कतरे से की है
जिसे कभी मेरे आँगन में
तेरे होने का एहसास था

Monday, August 9, 2010

कितना चाहा था न ऐसी भूल करे हम
जाने कैसे ये दिल्लगी कर दी
जो किसी और कि ज़िन्दगी से था जुड़ा
उसी से दिल लगाने कि गलती कर दी

अब दामन में आये हैं जो आंसू
तो आंसूओं को मुस्कुराना सिखा देंगे
आँखों में आंसू आ भी जाये तो
इन्हें पानी का नाम दे कर बहा देंगे

लोग कहते हैं मोहब्बत में दर्द मिलता है
मगर हम जानते हैं चंद लोगों को इश्क नसीब में मिलता है
ये दर्द भी मीठा जान पड़ता है
जब किसी अपने हम कदम से मिलता है

Sunday, August 8, 2010

कब से किसी अंजाने के ख्वाब सजाये बैठी हूँ
बिन देखे उसको दिल में बसाये बैठी हूँ
कैसा होगा वो ये जानती नहीं मैं
पर वो मिलेगा एक दिन ये मानती हूँ मैं

उसकी आवाज़ कैसी होगी ये जानती नहीं मैं
पर उसकी बातों में मेरी बातें होंगी शामिल
उसकी आँखों के रंग का कुछ पता नहीं मुझको
पर उसके ख्वाबों में मेरी सूरत रहेगी

ये नहीं जानती मैं वो कैसा दिखता होगा
पर जब वो दिखेगा तब और कुछ देखने की फुर्सत कहाँ होगी
कुछ पता नहीं वो कहाँ रहता होगा क्या करता होगा
बस इतना यकीन है वो अपनी बाहों में मुझे महफूज़ रखेगा

खुदा करे वो मेहरबान दिन जल्दी से आ जाये
जब ये अनजाना शख्स मेरी ज़िन्दगी बदल जाये

Saturday, August 7, 2010

Mera Bachpan

याद आ रहे हैं आज मुझे
बचपन के वो दिन
कितनी प्यारी बातें थी
कितने प्यारे प्यारे दिन

माँ अपने हाथों से खाना मुझे खिलाती थी
पापा रोज़ शाम को आ कर मुझे गले से लगाते थे
सबकी लाडली थी मैं घर में
छमछम पायल पहने आँगन में दौड़ लगाती

आज भी याद है मुझे लड़कपन की छोटी छोटी बातें
कैसे मेरे ज़िद करने पे दादाजी लहंगा लाते थे
दादी मुझे कहानियाँ सुनाती
बड़ीमम्मी मुझे गोद में ले कर लोरी गाती

वो हर बारिश के मौसम में
मैं और भाई कागज़ की नाव बनाते
और गलियों में बह रहे पानी में
नाव बहाने की रेस लगाते

आज भी याद करती हूँ मैं
लोग मुझसे मिलने आते
चीनी, सुम्मी, सोफ्टी जैसे
कितने ही नाम दे जाते

दूर चला गया है वो बचपन
पास हैं सिर्फ वो मीठी यादें
वो आँगन में बजती पायल की
धुंधली सी है एक परछाईं

Friday, August 6, 2010

I know the joy of being with you
Just because i have felt the pain of staying away from you

I realize the value that this million dollar smile adds to my face
Just because i have shed uncountable tears on this face

I can enjoy the romance created by the rain
Just because i have had sufficient dry days in life

I can feel the new aroma around me this spring
Just because the autumn stayed longer than usual

I really really know what Love does to me
Just because i have seen a lot of hatred around me

Thursday, August 5, 2010

मेरे होंठो पर जो मुस्कान आज है
तेरे साथ बिताये दो पलों का राज़ है
आँखों में अजब सी जो चमक आज है
वो तेरे पास होने का ही एहसास है

जब से तुम को आज मिली हूँ मैं
सब कहते हैं बदली बदली सी हूँ मैं
खोयी खोयी सी हूँ तेरे ख्यालों में
अपनी ही धुन में हो गयी हूँ जैसे गुम

ये जो आज नयी उमंग है
मेरे दिल की ये जो तरंग है
तेरे प्यार का ही ये रंग है
जो अब हर पल मेरे संग है

नहीं पता मुझे ये इश्क का एहसास कैसा होता है
पर लगता है अब जैसे ये बिलकुल ऐसा होता है
उड़ती रहती हूँ अपने ही ख्यालों में
ख्वाबों में तुझे ढूँढती रहती हूँ

Wednesday, August 4, 2010

बारिश की पहली बूँदें
महका गयी मेरा घर आँगन
खिल उठा मेरा तन मन
मिल गया धरती को नया जीवन

छमछम गिरती बारिश में
मिट्टी की गीली खुशबू ने
सब कुछ आज हसीं कर दिया
मेरे दिल में नया रस भर दिया

पौधों में हरियाली छाई
सुन्दर रंग रंगीली कलियाँ खिल आई
मोर बागों में नाचने लगे
जैसे अम्बर पे बादल छाने लगे 

नहीं समझ पाई मैं अब तक
कैसा है बारिश का जादू
भूल जाती हूँ सारे दुःख दर्द
मन पे नहीं रह पाता काबू

काश की ये बादल यूँही
जम कर सारे बरसे
धरती की प्यास बुझाये
लोगों में खुशहाली लाये 






Tuesday, August 3, 2010

आज से पहले तो मैं कभी शायर न था
टूटे हुए शब्दों को यूँ जोड़ता न था
क्यों आज फिर मैं ग़ज़ल लिख रहा हूँ
तेरे खयालों में डूबकर रात दिन लिख रहा हूँ


कल रात तू चुपके से चाँद ढले आ गयी
तेरी नजाकत देख कर चांदनी भी शर्मा गयी
तेरे आँचल को समेट कर चाँद बादल में जा छुपा
तेरा ये रूप देखकर शायद मैं शायर बना  


तेरी गहरी आँखें कैसे झील के जैसी लगने लगी
तेरे चेहरे का नूर कैसे सूरज की किरण बन गया
आज से पहले ये कभी न हुआ था
तू कैसे मुझे खुदा की कोई मूरत लगने लगी

Monday, August 2, 2010

दो चार बातें कह दिया करो
क्या जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाये
कुछ मेरे दिल की आवाज़ सुन लिया करो
क्या जाने कब मेरा नाम खो जाये

पल दो पल को मिले हैं खुशियों के लम्हे
तेरी बाहों की पनाहों में खो जाना चाहती हूँ
कोई जुस्तजू न रही अब कुछ और पाने की
ऐसे ही सारी उम्र अब बिता देना चाहती हूँ

मेरी हर ख़ुशी को तेरे दर सजाना चाहती हूँ
जब तक हूँ तुझे इस कदर हँसाना चाहती हूँ
नहीं यकींन ज़िन्दगी कब तक साथ निभाए
तेरे इश्क में टूट कर खो जाना चाहती हूँ

Sunday, August 1, 2010

आज तुझे ख़त लिखने बैठी बहुत सोच समझ कर मैं
पर कागज़ कलम हाथ में लेकर वापस खो गयी मैं

कितनी बातें कहने को थी
जाने कहाँ गुम हो गयी सारी
कुछ याद न रहा मन को एक पल
खामोश रह गयी मैं

कागज़ के हर कोने पर तेरा नाम लिख दिया
जितना कुछ कहने को था उस नाम में सब कह दिया
हो सके तो मेरे इस ख़त का जवाब तुम लिख देना
कुछ न कहने को हो फिर भी अपना नाम तुम लिख देना

तेरे नाम से ही ज़िन्दगी चलती है, तेरे नाम की साँसे गिनती हूँ
तेरे एक ख़त से साँसे ये कुछ और दिन चल जाएगी
लाखो बार तुझे भूलने की कोशिश की है
लाखो बार तेरा नाम लिख कर मिटाना चाहा
हर दिन तुझे खयालो में आने से रोका
पर हर रात तुम ख्वाबों में चले आये

Saturday, July 31, 2010

मुद्दतों से दिल में एक कसक सी है
आज इन आँखों को तुझे देखने की ललक सी है
सोचा था हमने जी लेंगे हम ऐसे ही
पर आज तुझसे एक मुलाकात की तड़प सी है

आज चांदनी रात में तुम मुझसे मिलने आ जाओ
दिल में जितनी बातें हैं सारी हमसे कह जाओ
फिर भी लबों को कहना कुछ न कहें
आँखों को आँखों से करने देना सारी बातें

अरसों से तुम को दिल में छुपाये बैठे हैं
तुझसे बिछड़ने के गम को सीने से लगाये बैठे हैं
फिर भी आज ये दर्द दबाये नहीं दबता
आँखों का एक भी अश्क रोके नहीं रुकता

बस एक बार के लिए तुम फिर से मिलने आ जाओ
बरसों तक फिर जीने की मन को हिम्मत दे जाओ
फिर न कभी बोलूगी फिर न कभी टोकूगी
जीवन के इस दर्द को हँसते हुए सह लूंगी









Friday, July 30, 2010

आंसू न बहाना आँख से कि बादल बरस जायेगे
तुझे रोता हुआ देख कर वो भी तड़प जायेंगे
आंसू न बहाना आँख से बादल बरस जायेंगे

जो बीता हुआ कल है वो अपना नहीं
फिर क्यों कल की यादों में जीना
आने वाले कल के सपने सजा लो
बना लो उन्हें अपनी आँखों का गहना

ये अश्क नहीं हैं मोती हैं
इन्हें यूँ ज़ाया न कर
तेरा मन सुन्दर चितवन है
उसे ऐसे दुखाया न कर

बौछारें बहुत गिर पड़ी इस ज़मीन पर
नदियाँ सैलाब बन गयी हैं
अभी अभी तो थमे हैं बादल थोड़े
आंसू न बहाना आँख से फिर बादल बरस जायेंगे






आज एक ऐसा ज़ख्म दिया तुमने जो कभी भर नहीं सकता
कुछ ऐसा कह गए तुम जो मन से मिट नहीं सकता
तुम कर न सके वफ़ा हमसे एक पल की भी
और अब ये दिल तुम्हारी इबादत में झुक नहीं सकता

Thursday, July 29, 2010

ये ढलता हुआ सूरज एक पैगाम दे रहा है
कि फिर एक रात को तुमसे जुदा हूँ मैं
चाँद कि चंचल मादकता में डूबी हुई है दुनिया सारी
फिर भी सुन ऐ चांदनी आज तुझसे खफा हूँ मैं

आज फिर एक दिन गुज़र गया तेरी बाहों में
और फिर कटेगी एक रात तेरी यादों में
फिर निकल जाएगी रात दूरियों की शिकायतों में
मन्नतें अनेक करनी हैं की आ जाओ तुम फिर ख्वाबों में

काश बस में होता कि वक़्त को थाम लेती मैं
तुम्हारी बाहों में समां कर सूरज को टोक देती मैं
नहीं ढलने देती दिन कि जब तुम होते मेरे पास
चाँद भी समझ जाता मेरी कही इतनी बात
कि कुछ नहीं वो भी जो चांदनी न हो उसके पास

मैं जानता हूँ की जिस हवा के झोंके ने मुझे छुआ है अभी अभी
उसने तुम्हे भी ज़रूर छुआ होगा,
ये चाँद की नरम ठंडक तुम्हारे गालों को अपना बिस्तर बना क बैठी होगी
ये बारिश की हलकी हलकी बूंदे, तुम्हारे बालों पर ओस की बूँद की तरह स्थिर होंगी
ये रात की कालिमा तुम्हारी आँखों की चमक से हार कर कहीं कोने में जा दुबकी होगी
ये क्या महक है तुम्हारी साँसों की, कि रात रानी के फूल भी शर्मा के खिल उठे हैं

देखो कहीं सो  न जाना, रात बहुत मुश्किल से जागी है आज  ||




Wednesday, July 28, 2010

मुझको क्या पता था कल तक क्या भूल रही थी मैं,
तन्हाइयों के साथ रहती, ख़ामोशी से बातें करती,
अपने ही मन के झूले झूल रही थी मैं,
क्या पाता था कल तक मुझको की कुछ भूल रही थी मैं |

फिर जाने कैसे एक दिन तुम राह में चले आये,
मदमस्त हवा के झोके में फूलों की खुशबू भर लाये,
सूना सा था जो आँचल कल तक
वो खुशियों से महकाया
कल तक था जो उजड़ा
उस बाग़ को फिर लहराया

तुम न आते फिर भी ये सांसें रूकती नहीं चलती
पर जीवन जीना क्या होता है शायद कभी नहीं समझती
समझा होगा खुदा ने मेरी ज़िन्दगी में इस कमी को
तभी तो न जाने तुम्हारी किस राह से ला जोड़ा मेरी इस राह को ||

Tuesday, July 27, 2010

अक्सर सोचा करती हूँ अकेले में
कि क्या ज़िन्दगी इसी का नाम है
जो पास है वो अपना नहीं और जो दूर है वो उससे ताल्लुकात नहीं
क्यों अपना कोई अपना नहीं रहता और जो दूर है उसका आसरा नहीं रहता

चंचलता ऐसी की पानी के जैसी
ज़िन्दगी का कोई एक रास्ता नहीं होता
पग-पग बिखरती पग-पग संभलती
पल में ठहरती पल में बदलती
शायद जीना भी इसी का ही नाम होता

Monday, July 26, 2010



क्या समझोगे तुम मेरी तन्हाई को
जिसकी हर कदम पे सारी दुनिया परछाई हो
इक तुम्हारी कमी के कारण भीड़ में भी तनहा रहती हूँ
तुम जो हो नहीं तो तुम्हारी यादों से ही अपने दर्द कहती हूँ


कभी फुर्सत मिले इस जहाँ से 
तो इस ओर भी देख लेना तुम
जब सूरज ढल जायेगा और पर्छैयाँ घुल जाएगी
तब तुम्हारा हाथ थामने मैं ही नज़र आऊँगी
बरसों से तुमने हमे पुकारा नहीं
शायद नाम हमारा तुमको अब गवारा नहीं|
पसंद आ गया कोई और नाम तुम्हे
या रहा हमारा ही नाम अब उतना प्यारा नहीं||
मेरे ख्वाब में जो एक शख्स आता जाता है
वो तुमसे मिलता जुलता है
जो हर रात मुझे जगा जाता है
तुमसे ही मिलता चेहरा है

डूबी रहती हूँ सोच में मैं
कि तुम सच हो या मेरे दिल कि कोई तस्वीर
हाथ बड़ा कर छूना चाहूं 
तो पल में हो जाते हो गुम

पहले तो कभी इस एहसास का एहसास न था
ज़िन्दगी में मुहब्बत का कोई नाम न था
कब तक ख्वाबों में ही मिलने आओगे
अब ज़िन्दगी में भी चले आओ

Sunday, July 25, 2010

हर गुज़रते पल के साथ
तुम ये दावा करते हो कि मैं हूँ
मेरी हर टूटी उम्मीद पर
तुम वादा करते जाते हो कि मैं हूँ

कहाँ रह जाते हो तुम मगर
जब दिल को तुम्हारे साथ की ज़रूरत होती है
इन आँखों को किसी के एहसास की ज़रूरत होती है
तुम क्यों नज़र नहीं आते
जब ये खालीपन मुझे और भी वीरान कर जाता है
जिस वक़्त मुझे तुम्हारे सिवा कोई और नहीं समझ पाता

ऐसे वादे मत किया करो
जो निभाना न आये
मेरी मुरझाई हुई ज़िन्दगी को बेजान कर जाये
मैं ये एहसास करती हूँ
जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है
तब तुम्हे पूरी दुनिया की फ़िक्र होती है

शायद किसी दिन मैं भी तुम बिन जीना सीख लूं
बिना शिकायत साँसे लेकर ज़िन्दगी जी भी लूं
पर क्या वो खुशबू वापस आ पायेगी
उड़े हुए रंगों पर क्या बहार छा पायेगी????

Saturday, April 3, 2010

सबसे करीब हो कर भी सबसे दूर है
पास हो कर भी कितनी मजबूर है
मन करता है तुझसे बात करूँ मैं
अपने दुःख दर्द कहूँ मैं
पर तू तो सिर्फ दिन दिन की साथी है
अँधेरे तले छुप जाती है
शायद ज़िन्दगी का दस्तूर है ये
इनमे परछाइयों का क्या कसूर है||



Sunday, March 28, 2010

क्या तुम्हे एहसास है की तुमको पाकर खुद को भूल गयी थी मैं
तुम्हारे रंग में कुछ इस तरह रंग गयी थी मैं
सिमट गयी थी पूरी दुनिया तुम तक मेरी
तुम्हारी बातों में कुछ इसी तरह से खो गयी थी मैं

क्या तुम्हे एहसास है की मैंने अपने आँचल में सिर्फ तुम्हारे ख्वाब संजोये थे
सपनो की दुनिया में बस इसी तरह सोई थी मैं
बस एक ही तमन्ना थी इस दिल में
की तुम्हारे सारे ख्वाब पूरे कर देती

खबर तक न लगी मुझे कब तुम अकेला कर गए
हज़ार वादे कर के तुम क्यों ऐसे दगा दे गए
ज़िन्दगी इतनी खाली तो कभी नहीं जान पड़ती थी
सावन में सारे फूल पतझड़ से मुरझा गए

अब जब कुछ बाकी नहीं बचा है तुम्हे देने को
तो तुम क्यों मुझसे मेरी यादें मांग रहे हो
ज़िन्दगी जीने का आखिरी बहाना मांग रहे हो
अब सिर्फ इनमे ही तो बस्ती है baatein तुम्हारी 

Saturday, March 27, 2010

It has been a while since i laughed out aloud
It has been a while since i smiled from my heart
It has been long time, I've been missing the sparkle of my eyes
My reflection in the Mirror tries to locate that lost child in me
And I am still waiting for you to send my Smile...My Sparkle...My Soul...back to me
Like all the colours of a Butterfly fade away
Like all the beautiful flowers withering away
All the elements of the garden dying out
So has been my life without you
Waiting for the next Spring to bestow my life
With immortal vibrant colours
मैं कल भी नहीं समझती थी,
और आज भी जानने में नाकाम हूँ,
क्यों अपनी आँखों के हर ख्वाब को,
दुनिया की अदालत में मंज़ूर कराना पड़ता है,
"लोग क्या कहेंगे" के फेर ने कितनी ही जिंदगियां बदल दी.
तूफानी बारिशो में तस्वीरो के रंग धुल जाते हैं,
कागज़ के चंद टुकड़े हाथो में रह जाते हैं,
रूठे हुए नैना तकते हैं मेघो को,
पर ऐसे तुफानो के बाद ही तो इन्द्रधनुष निकल आते हैं.


Akeli hi chalna chahti hu zindagi ki raah me
Tujhe kuch is kadar apne sath chahti hu ab
Ki teri har mushkil aasan karti jau
Aur apne har gam ko khud hi jiti jau...

And the journey begins...


Here I am...and indeed very glad to be here...this is the world of the most creative thoughts flowing from 360 degrees...a beautiful world where construtive minds come together to share the life...life of their dreams...hence i come with Life is a Dream...