बचपन से ही एक खुशबू को जाना है
माँ के आँचल को बहुत करीब से पहचाना है
जिसने हर शाम मेरे माथे को पोंछा
और गर्मी की रातों को पंखा झला
माँ की ममता भी बेमिसाल होती है
खुद थके होने पर भी मुझे सुला कर सोती है
मेरे सपनों में वो न जाने कहाँ से परियों को ले कर आती थी
आँख बंद करते ही दूर देस की सैर कराती थी
मेरी एक आहट पर वो दौड़ी आती थी
सब कुछ छोड़ कर मेरी देखरेख में लग जाती
मेरी फ़िक्र करने में उसे अपना ध्यान न रहता
कैसे कोई भूल सकता है ममता की मूरत का ऐसा चेहरा
आज जब मैं थोड़ी इस आँचल के बाहर कदम रख चली हूँ
थोड़ी लडखडाती थोड़ी कंपकपाती बड़ चली हूँ
फिर भी जब कभी दुनिया से मुझे डर लगता है
सिर्फ एक उसी आँचल में मुझे आज भी घर मिलता है
GREAT AUR ACHHA KAR SAKTE HO SHABDON KO THOUGHT SAHI HAIN
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