Monday, August 2, 2010

दो चार बातें कह दिया करो
क्या जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाये
कुछ मेरे दिल की आवाज़ सुन लिया करो
क्या जाने कब मेरा नाम खो जाये

पल दो पल को मिले हैं खुशियों के लम्हे
तेरी बाहों की पनाहों में खो जाना चाहती हूँ
कोई जुस्तजू न रही अब कुछ और पाने की
ऐसे ही सारी उम्र अब बिता देना चाहती हूँ

मेरी हर ख़ुशी को तेरे दर सजाना चाहती हूँ
जब तक हूँ तुझे इस कदर हँसाना चाहती हूँ
नहीं यकींन ज़िन्दगी कब तक साथ निभाए
तेरे इश्क में टूट कर खो जाना चाहती हूँ

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