Sunday, August 8, 2010

कब से किसी अंजाने के ख्वाब सजाये बैठी हूँ
बिन देखे उसको दिल में बसाये बैठी हूँ
कैसा होगा वो ये जानती नहीं मैं
पर वो मिलेगा एक दिन ये मानती हूँ मैं

उसकी आवाज़ कैसी होगी ये जानती नहीं मैं
पर उसकी बातों में मेरी बातें होंगी शामिल
उसकी आँखों के रंग का कुछ पता नहीं मुझको
पर उसके ख्वाबों में मेरी सूरत रहेगी

ये नहीं जानती मैं वो कैसा दिखता होगा
पर जब वो दिखेगा तब और कुछ देखने की फुर्सत कहाँ होगी
कुछ पता नहीं वो कहाँ रहता होगा क्या करता होगा
बस इतना यकीन है वो अपनी बाहों में मुझे महफूज़ रखेगा

खुदा करे वो मेहरबान दिन जल्दी से आ जाये
जब ये अनजाना शख्स मेरी ज़िन्दगी बदल जाये

1 comment:

  1. Vo aayega vo jaroor aayega,
    aur kahega,
    hat pagli itna naraz hoten hain kya.

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