Monday, December 8, 2014


I am sitting down to pen my thoughts after a very very long time because i am shocked and shaken beyond words. Till now i have been a regular commuter in private cabs however the last incident of the girl being raped by the Uber cab driver has left me insecure and worried. It is a cab service which claims to focus primarily on safety and security more than anything else hired a cab driver who has not only committed a hideous crime but also had a criminal record. So is it to be believed that these private cab services are so desperate to cover the market share that they do not care who they are hiring? No background checks are done before appointing a driver?If it is so then girls like me who don't own a car yet want to move around freely should forget doing it anymore. We should only step out in the so called safer hours from 9am to 5pm and lock ourselves in our houses after that or else risk ourselves into becoming another rape victim.

There are n number of cab services in all the big cities like, Delhi NCR, Mumbai, Kolkata, Chennai, etc and a lot of women hire their services to travel safe and on time. We believe that when they are charging us a hell lot of money, the least they can guarantee is that we reach our destination safe and sound. If a prestigious cab service like Uber fails to do so, i wonder will other cabs be able to keep up to the expectations.

It is high time that companies like Uber realize their responsibility and take all possible measures to ensure safety for all, especially women. They should not only do a proper background check of the drivers they are hiring but also do motivational programmes and schemes for the drivers to keep them focussed. They should be a part of the training sessions where they are educated and made to realize the preciousness of human life and how to respect a woman. There should be live tracking of all the cabs which should be monitored from their back office and driver shouldn't have the control to turn off the live tracking.

Next time, i book a private cab service, i am going to be extra vigilant about the service being offered and i do urge the same to all my fellow women commuters.




Wednesday, December 21, 2011

चाँद की चांदनी सतरंगी दिख रही है
पत्तों की सरसराहट गुफ्तगू कर रही है
हवाओं में नशीली ठंडक बह रही है
सुना है सभी ने की तुम आ रहे हो

आँखों को काजल लगाने का मन है
हाथों को कंगन खनकाने का मन है
पायल रुनझुन रुनझुन गाये जा रही है
सुना है इन सभी ने की तुम आ रहे हो

होठों की मुस्कान आज छुपाये नहीं छुपती
पलकों से शर्म हटाये नहीं हटती
सारे आलम में मदहोशी छा रही है
जब से सुना है की तुम आ रहे हो

Wednesday, December 14, 2011

खामोश सा मंज़र है आज
तन्हा अकेली बैठी हूँ मैं
दिल में तेरी यादें हैं बस
और आँखों में उनकी निशानी

क्यों वक़्त बेवक्त खो जाती हूँ
तुझसे ही हूँ मैं
तुझमे गम हो जाती हूँ
दुनिया बाकी झूठी लगती है

तेरे बिना कुछ कमी सी लगती है
मेरी ही धड़कन अधूरी सी लगती है
सोचा था जी लेंगे हम भी तेरे बिन
उस दिन से ज़िन्दगी ही थमी सी लगती है

हंसती अब भी हूँ मैं
पर खिलखिलाती अब नहीं
आँखों में काजल अब भी है
पर शरारत चली गयी

हर बात जो तुझसे कह लिया करती थी
इस दिल में सिमट कर रह गयी
तुम शायद पढ़ लो कहीं से
इसलिए अब ये कविता बन गयी

Monday, December 12, 2011

दिल में जो हल्का दर्द उठा है
वो तुम्हे भी है मुझे भी
आंसू जो किसी बात पर छलके हैं
वो तेरे भी हैं मेरे भी

बात एक होठों पर पर आ ठहर गयी है
वो सुनी तू ने भी है मैंने भी
अनजान से इस रिश्ते को न जाने क्या कहते हैं
यही सवाल तेरे ज़हन में है मेरे भी

भूल सकती नहीं वो रात कभी
जब दिल पहली बार इस तरह धड़का था
खामोश से समंदर को जैसे
चांदनी रात की लहरों ने आ जकड़ा था

आँखें जो मुस्कुराती हैं मेरी
वो तेरी होठों की मुस्कान का आइना है
तेरी ख़ुशी से है हर ख़ुशी मेरी
कहते हैं मोहब्बत जिसे तुझे भी है मुझे भी

Tuesday, December 6, 2011

राहों में अकेले खड़े यूँ ही
महसूस इसी बात को करती हूँ
तन्हा भले दिखती नहीं मैं
पर तन्हाइयों में सिमटी खड़ी हूँ

तेरा साथ न होने से आज
मैं तिनकों सी बिखरी पड़ी हूँ
कुछ कहती नहीं कभी किसी से
पर तेरे नाम से जीती हूँ

तुमसे करी थी जो बातें
तितली के रंगों जैसी लगती हैं
तुमसे रूठ कर गुज़ारे लम्हे
अँधेरी रातों जैसे लगते हैं

शिकवे भी हैं तुमसे, शिकायतें भी
हज़ारों आंसू देने की तकलीफें भी
फिर भी क्यों खलता है दिल को खालीपन
क्यों लगता है तुझ से अब भी ये अपनापन

यादें भी तुमसे हैं, हंसी भी
प्यार करने की हर ख़ुशी भी
पर क्यों अपनी मोहब्बत अधूरी सी है
तेरे मेरे बीच क्यों मीलों की दूरी सी है

Monday, August 29, 2011

बातों ही बातों में फिर वही बात हो गयी
फिर वही तार छिड़े हैं, फिर वही रात हो गयी

तन्हाइयों में बिखरी ये खामोशियाँ तेरी
मेरे इस दिल को बेचैन कर जाती हैं

अब भी कई सवाल हैं कहे अनकहे
तेरे जवाबों का इंतज़ार है दिल को

कहते तो तुम भी हो गुनाह नहीं है ये
क्यों फिर मुझे झूठी तसल्ली देते रहते हो

पुरानी बातें कुछ भूल जाने को कहते हो
क्यों कुछ बातें आज भी जीना चाहते हो


सब जानते थे तुम की तन्हा थी मैं ज़िन्दगी में
क्यों फिर तुम भी मुझे तन्हा कर चले गए

आज तुम हो भी नहीं भी हो ज़िन्दगी में
दो पल साथ चल मीलों दूर चले जाते हो

जीवन मेरा उथल पुथल करती लहरों सामान है

ये लहरें जिसे ढूँढती हैं वो शांत किनारा हो तुम



Thursday, August 25, 2011

अनजाने ही कोई चला आया ज़िन्दगी में
हर सवाल का फिर वो जवाब बन गया

यूँ तो देखे थे कई सपने मैं जागते सोते  
जाने कैसे वो ख्वाब सबसे ख़ास बन गया

मुझ तक ही सिमटी थी मेरी ये दुनिया सारी
एक अजनबी कैसे हमदम इस बार बन गया

भीड़ में चलते हुए तन्हाइयों में गुम हो जाती हूँ 
तन्हाइयों में रहकर भी उसको पास पाती हूँ

खुद में ही डूबे रहने का दिल करता है मेरा
मैं ही मेरी पक्की सहेली हो चली हूँ

लब्ज़ में क्या बयान करूँ मेरे दिल का हाल 
धड़कनों को धड़कनों से जुड़ने का अरमान मगर है