चाँद की चांदनी सतरंगी दिख रही है
पत्तों की सरसराहट गुफ्तगू कर रही है
हवाओं में नशीली ठंडक बह रही है
सुना है सभी ने की तुम आ रहे हो
आँखों को काजल लगाने का मन है
हाथों को कंगन खनकाने का मन है
पायल रुनझुन रुनझुन गाये जा रही है
सुना है इन सभी ने की तुम आ रहे हो
होठों की मुस्कान आज छुपाये नहीं छुपती
पलकों से शर्म हटाये नहीं हटती
सारे आलम में मदहोशी छा रही है
जब से सुना है की तुम आ रहे हो
पत्तों की सरसराहट गुफ्तगू कर रही है
हवाओं में नशीली ठंडक बह रही है
सुना है सभी ने की तुम आ रहे हो
आँखों को काजल लगाने का मन है
हाथों को कंगन खनकाने का मन है
पायल रुनझुन रुनझुन गाये जा रही है
सुना है इन सभी ने की तुम आ रहे हो
होठों की मुस्कान आज छुपाये नहीं छुपती
पलकों से शर्म हटाये नहीं हटती
सारे आलम में मदहोशी छा रही है
जब से सुना है की तुम आ रहे हो
Nice :) brings a smile to your face, its a welcome respite from the emotionally heavy poems...i like it!
ReplyDelete