Wednesday, December 21, 2011

चाँद की चांदनी सतरंगी दिख रही है
पत्तों की सरसराहट गुफ्तगू कर रही है
हवाओं में नशीली ठंडक बह रही है
सुना है सभी ने की तुम आ रहे हो

आँखों को काजल लगाने का मन है
हाथों को कंगन खनकाने का मन है
पायल रुनझुन रुनझुन गाये जा रही है
सुना है इन सभी ने की तुम आ रहे हो

होठों की मुस्कान आज छुपाये नहीं छुपती
पलकों से शर्म हटाये नहीं हटती
सारे आलम में मदहोशी छा रही है
जब से सुना है की तुम आ रहे हो

1 comment:

  1. Nice :) brings a smile to your face, its a welcome respite from the emotionally heavy poems...i like it!

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