खामोश सा मंज़र है आज
तन्हा अकेली बैठी हूँ मैं
दिल में तेरी यादें हैं बस
और आँखों में उनकी निशानी
क्यों वक़्त बेवक्त खो जाती हूँ
तुझसे ही हूँ मैं
तुझमे गम हो जाती हूँ
दुनिया बाकी झूठी लगती है
तेरे बिना कुछ कमी सी लगती है
मेरी ही धड़कन अधूरी सी लगती है
सोचा था जी लेंगे हम भी तेरे बिन
उस दिन से ज़िन्दगी ही थमी सी लगती है
हंसती अब भी हूँ मैं
पर खिलखिलाती अब नहीं
आँखों में काजल अब भी है
पर शरारत चली गयी
हर बात जो तुझसे कह लिया करती थी
इस दिल में सिमट कर रह गयी
तुम शायद पढ़ लो कहीं से
इसलिए अब ये कविता बन गयी
तन्हा अकेली बैठी हूँ मैं
दिल में तेरी यादें हैं बस
और आँखों में उनकी निशानी
क्यों वक़्त बेवक्त खो जाती हूँ
तुझसे ही हूँ मैं
तुझमे गम हो जाती हूँ
दुनिया बाकी झूठी लगती है
तेरे बिना कुछ कमी सी लगती है
मेरी ही धड़कन अधूरी सी लगती है
सोचा था जी लेंगे हम भी तेरे बिन
उस दिन से ज़िन्दगी ही थमी सी लगती है
हंसती अब भी हूँ मैं
पर खिलखिलाती अब नहीं
आँखों में काजल अब भी है
पर शरारत चली गयी
हर बात जो तुझसे कह लिया करती थी
इस दिल में सिमट कर रह गयी
तुम शायद पढ़ लो कहीं से
इसलिए अब ये कविता बन गयी
superb
ReplyDeleteOk, superb cannot be the only word....its amazing poetry, love the master lines like तुम शायद पढ़ लो कहीं से, इसलिए अब ये कविता बन गयी and हंसती अब भी हूँ मैं, पर खिलखिलाती अब नहीं, आँखों में काजल अब भी है
ReplyDeleteपर शरारत चली गयी...waiting for more :)
...waiting for more