Wednesday, December 14, 2011

खामोश सा मंज़र है आज
तन्हा अकेली बैठी हूँ मैं
दिल में तेरी यादें हैं बस
और आँखों में उनकी निशानी

क्यों वक़्त बेवक्त खो जाती हूँ
तुझसे ही हूँ मैं
तुझमे गम हो जाती हूँ
दुनिया बाकी झूठी लगती है

तेरे बिना कुछ कमी सी लगती है
मेरी ही धड़कन अधूरी सी लगती है
सोचा था जी लेंगे हम भी तेरे बिन
उस दिन से ज़िन्दगी ही थमी सी लगती है

हंसती अब भी हूँ मैं
पर खिलखिलाती अब नहीं
आँखों में काजल अब भी है
पर शरारत चली गयी

हर बात जो तुझसे कह लिया करती थी
इस दिल में सिमट कर रह गयी
तुम शायद पढ़ लो कहीं से
इसलिए अब ये कविता बन गयी

2 comments:

  1. Ok, superb cannot be the only word....its amazing poetry, love the master lines like तुम शायद पढ़ लो कहीं से, इसलिए अब ये कविता बन गयी and हंसती अब भी हूँ मैं, पर खिलखिलाती अब नहीं, आँखों में काजल अब भी है
    पर शरारत चली गयी...waiting for more :)

    ...waiting for more

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