Tuesday, December 6, 2011

राहों में अकेले खड़े यूँ ही
महसूस इसी बात को करती हूँ
तन्हा भले दिखती नहीं मैं
पर तन्हाइयों में सिमटी खड़ी हूँ

तेरा साथ न होने से आज
मैं तिनकों सी बिखरी पड़ी हूँ
कुछ कहती नहीं कभी किसी से
पर तेरे नाम से जीती हूँ

तुमसे करी थी जो बातें
तितली के रंगों जैसी लगती हैं
तुमसे रूठ कर गुज़ारे लम्हे
अँधेरी रातों जैसे लगते हैं

शिकवे भी हैं तुमसे, शिकायतें भी
हज़ारों आंसू देने की तकलीफें भी
फिर भी क्यों खलता है दिल को खालीपन
क्यों लगता है तुझ से अब भी ये अपनापन

यादें भी तुमसे हैं, हंसी भी
प्यार करने की हर ख़ुशी भी
पर क्यों अपनी मोहब्बत अधूरी सी है
तेरे मेरे बीच क्यों मीलों की दूरी सी है

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