Life is a Dream...
Saturday, March 27, 2010
मैं कल भी नहीं समझती थी,
और आज भी जानने में नाकाम हूँ,
क्यों अपनी आँखों के हर ख्वाब को,
दुनिया की अदालत में मंज़ूर कराना पड़ता है,
"लोग क्या कहेंगे" के फेर ने कितनी ही जिंदगियां बदल दी.
1 comment:
Unknown
March 27, 2010 at 2:27 PM
hummmmmmmmmmmmmmm.... no words for this
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hummmmmmmmmmmmmmm.... no words for this
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