Saturday, October 23, 2010

आज फिर वही चाँद घिर आया है
फिर वही रात का अँधेरा छाया है
कल फिर वो ही सुबह आएगी
रोज़ की तरह सुनहरी धुप खिल जाएगी

सब पहले जैसा है आज भी
मगर फिर भी कुछ अलग है
मन में अनजानी खलिश है
आँखों में हलकी सी नमी है

रात भर उनसे मिलने की तमन्ना की
जब वो आये तो सारे सवाल आँखों में ही रुक गए
किस्मत बेहद कठिन है मेरी जानती हूँ मैं
बस आज एक करिश्मा देख लेना चाहती हूँ

जिसकी मोहब्बत में सब कुछ भुलाये बैठी हूँ
एक पल के लिए उन्हें इस तरह पाना चाहती हूँ
कि फिर कुछ और पाने कि तमन्ना न रहे
उनकी ही बाहों में ज़िन्दगी गुज़ार देना चाहती हूँ

1 comment:

  1. Very nice !
    I saw your blog ... its excellent.
    Hope that the flow of such beautiful lines will be continuous. Best wishes from me.

    Regards,
    Shantanu Padhye
    shantanu-padhye.blogspot.com

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