तन्हाइयों के साथ रहती, ख़ामोशी से बातें करती,
अपने ही मन के झूले झूल रही थी मैं,
क्या पाता था कल तक मुझको की कुछ भूल रही थी मैं |
फिर जाने कैसे एक दिन तुम राह में चले आये,
मदमस्त हवा के झोके में फूलों की खुशबू भर लाये,
सूना सा था जो आँचल कल तक
वो खुशियों से महकाया
कल तक था जो उजड़ा
उस बाग़ को फिर लहराया
तुम न आते फिर भी ये सांसें रूकती नहीं चलती
पर जीवन जीना क्या होता है शायद कभी नहीं समझती
समझा होगा खुदा ने मेरी ज़िन्दगी में इस कमी को
तभी तो न जाने तुम्हारी किस राह से ला जोड़ा मेरी इस राह को ||
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