क्यों आते जाते कोई मेरे दिल का हाल पूछता है
अब तो आलम ये है कि हाल-ए-दिल भी अनजान मालूम होता है
बरसों से जो धड़कता आया उनकी एक आरज़ू पर
आज उसका एक पल और धड़कना बेसबब जान होता है
लोगों की हमने कभी फ़िक्र कहाँ करी थी
पर एक उन्हें ही मेरे सिवा ये सारा जहां नज़र आया है
भीड़ में मुस्कुराने को वो अपनी तन्हाई का नाम देते हैं
हमने तो खुद को एक वीराने रेगिस्तान में पाया है
तिल तिल कर संजोये थे जो सपने अपने आँगन में
आज उन्ही पर किसी को अपना घर बनाते पाया है
वो जानते थे की वो मेरी हर मन्नत में हैं वो शामिल
फिर भी उन्होंने किसी और को अपनी दुआ बनाया है
Wednesday, August 25, 2010
Saturday, August 21, 2010
I had so much to talk to you
So much to complain, so much to ask
I had promised myself i will do all the talking
and then suddenly...
I got lost in those mesmerizing eyes
I could see your heart straight into the depth
And No my questions were not yet answered
But the love which flowed for me left me spell bounded
I resisted from falling into those eyes
but that smoothness left my efforts in vain
that warmth of your arms wrapped around me
melted away all my resistance
That moment seemed to be perfect
It seemed like the ultimate eternity
I wanted the time to stop flying
To be freezed like that forever...
So much to complain, so much to ask
I had promised myself i will do all the talking
and then suddenly...
I got lost in those mesmerizing eyes
I could see your heart straight into the depth
And No my questions were not yet answered
But the love which flowed for me left me spell bounded
I resisted from falling into those eyes
but that smoothness left my efforts in vain
that warmth of your arms wrapped around me
melted away all my resistance
That moment seemed to be perfect
It seemed like the ultimate eternity
I wanted the time to stop flying
To be freezed like that forever...
Friday, August 20, 2010
आज सब बहुत धुन्दला नज़र आ रहा है
पता नहीं ये आंसू हैं या फिर बारिश का पानी
फीके पड़ रहे हैं तेरे वादे सारे
तू वाकई बदल गया है या है मुझे कोई भ्रम
जाने क्यों धुंधली पड़ गयी हैं सारी बातें
तेरी मेरी हसीन मुलाकातें
वक़्त ने कोई करवट ली है
या है ये पल दो पल का वेहम
और अगर कहीं किस्मत मेरी चंचल ही निकले
तेरे मुझसे किये सारे वादे झूठे ही निकले
तो आज उसी धुंद की तनहाइयों में खो जाना चाहती हूँ
तेरे प्यार के छल से बहुत दूर हो जाना चाहती हूँ
पता नहीं ये आंसू हैं या फिर बारिश का पानी
फीके पड़ रहे हैं तेरे वादे सारे
तू वाकई बदल गया है या है मुझे कोई भ्रम
जाने क्यों धुंधली पड़ गयी हैं सारी बातें
तेरी मेरी हसीन मुलाकातें
वक़्त ने कोई करवट ली है
या है ये पल दो पल का वेहम
और अगर कहीं किस्मत मेरी चंचल ही निकले
तेरे मुझसे किये सारे वादे झूठे ही निकले
तो आज उसी धुंद की तनहाइयों में खो जाना चाहती हूँ
तेरे प्यार के छल से बहुत दूर हो जाना चाहती हूँ
Monday, August 16, 2010
एक छोटा सा सपना ले कर जी रही थी मैं
पत्थर की ठोकर से वो भी टूट गया
उस सपने में बसाया था छोटा सा जहाँ
कांच की तरह वो भी टूटकर बिखर गया
बहुत ज़ालिम होती है दुनिया भी
किसी और को मुस्कुराता नहीं देख पाती
किसी के घर में लौ जलती देख
जल की गगरी भर भर लाती
बड़ी मशक्कत के बाद समेटी थी
जो मुट्ठी भर खुशियाँ
वो हाथों से सारी फिसल गयी
खामोश खड़ी मैं बिखर गयी
क्या ज़िन्दगी इसी को कहते हैं?
लोगों के फैसलों पर हम सांस लेते हैं
पत्थर की ठोकर से वो भी टूट गया
उस सपने में बसाया था छोटा सा जहाँ
कांच की तरह वो भी टूटकर बिखर गया
बहुत ज़ालिम होती है दुनिया भी
किसी और को मुस्कुराता नहीं देख पाती
किसी के घर में लौ जलती देख
जल की गगरी भर भर लाती
बड़ी मशक्कत के बाद समेटी थी
जो मुट्ठी भर खुशियाँ
वो हाथों से सारी फिसल गयी
खामोश खड़ी मैं बिखर गयी
क्या ज़िन्दगी इसी को कहते हैं?
लोगों के फैसलों पर हम सांस लेते हैं
Sunday, August 15, 2010
चुपके चुपके तिरछी निगाहों से
रह रह कर उसको ही तक रही थी मैं
उसके नैनो में नैन डालकर
ख़ामोशी में भी बातें कर रही थी
उसकी आँखें अपनी तनहाइयों की
एक अलग ही दास्ताँ कह रही थी
वो मुस्कुरा रही थी
पर चूर चूर हो कर रो रही थी
उन आंसुओं के समंदर में
सब कुछ धुन्दला जान पड़ रहा था
वो सौ कहानी बताकर भी
किसी एक कहानी में खो रही थी
न जाने कितना दर्द छुपा था
उस मासूम चेहरे के पीछे
न जाने कितनी ही शिकायतें
तैर रही थी उन आँखों में
उन आँखों से एकाएक वो आंसुओं का समंदर बह निकला
अचानक चौंक गयी मैं जब कुछ गीलापन लगा गालों पर
फिर समझ आया की आईने में
अपना ही प्रतिबिम्ब देख रही थी मैं
रह रह कर उसको ही तक रही थी मैं
उसके नैनो में नैन डालकर
ख़ामोशी में भी बातें कर रही थी
उसकी आँखें अपनी तनहाइयों की
एक अलग ही दास्ताँ कह रही थी
वो मुस्कुरा रही थी
पर चूर चूर हो कर रो रही थी
उन आंसुओं के समंदर में
सब कुछ धुन्दला जान पड़ रहा था
वो सौ कहानी बताकर भी
किसी एक कहानी में खो रही थी
न जाने कितना दर्द छुपा था
उस मासूम चेहरे के पीछे
न जाने कितनी ही शिकायतें
तैर रही थी उन आँखों में
उन आँखों से एकाएक वो आंसुओं का समंदर बह निकला
अचानक चौंक गयी मैं जब कुछ गीलापन लगा गालों पर
फिर समझ आया की आईने में
अपना ही प्रतिबिम्ब देख रही थी मैं
Saturday, August 14, 2010
आज रात खिड़की पर बैठी मैं
गुमसुम खोयी हुई सी
दूर गगन में चाँद को ताक रही थी
उसकी सफ़ेद चांदनी को खाली बैठे निहार रही थी
कितनी खूबसूरत है ये चाँद की निर्मल छाया
जो अभी अभी मेरे चेहरे को चूम गयी है
कितनी पावन है इस चांदनी की ठंडक
जो बारिश की तरह मुझ पर बरस रही है
काली घनेरी रात में चाँद की ये चांदनी
जैसे रात के अँधेरे में जुगनू फैलाते रौशनी
माना की मेरे मन में भी हैं कई अंधियारे कोने
पर इसी चाँद से ले कर एक ज्योति मैं भी जला लूं
आज पूर्णिमा की रात आ ही गयी है
तो अपने घर में भी मैं दिए जला लूं
दुःख तो हैं कदम कदम पर जीवन में
इन दुखों के बीच थोड़ी खुशियाँ मना लूं
गुमसुम खोयी हुई सी
दूर गगन में चाँद को ताक रही थी
उसकी सफ़ेद चांदनी को खाली बैठे निहार रही थी
कितनी खूबसूरत है ये चाँद की निर्मल छाया
जो अभी अभी मेरे चेहरे को चूम गयी है
कितनी पावन है इस चांदनी की ठंडक
जो बारिश की तरह मुझ पर बरस रही है
काली घनेरी रात में चाँद की ये चांदनी
जैसे रात के अँधेरे में जुगनू फैलाते रौशनी
माना की मेरे मन में भी हैं कई अंधियारे कोने
पर इसी चाँद से ले कर एक ज्योति मैं भी जला लूं
आज पूर्णिमा की रात आ ही गयी है
तो अपने घर में भी मैं दिए जला लूं
दुःख तो हैं कदम कदम पर जीवन में
इन दुखों के बीच थोड़ी खुशियाँ मना लूं
Friday, August 13, 2010
Kuch Panktiyaan likh dene par
tum mujhe shayar na samajhna
abhi to bas shuru hi hua hai safar, dil ka kalam ke sath
tu kahin ise dillagi na samajhna
pata nahin kyon lag gaya is kalam ka nasha
nashe ka to main kabhi bhi aadi na tha
jab chad hi gaya hai mujhe
to tu kahin mujhe sharabi na samjhna
kehte hain ghazal bhram hoti hai
samne reh kar tu ise tod na dena
tu sath hoti hai to ghazal apne aap banti hai
meri kalpanao ki udaan apne aap banti hai
tu yunhi sath rehna hamesha mere
ho gar ye khwab to mujhe uthne na dena
Thursday, August 12, 2010
कितनी ही बातें करी थी हमने
वादे कितने करे थे एक दुसरे से
सारे आज फिर आँखों के सामने तैर गए
बरसों से रोक रखे थे जो आंसू पलकों पर आ कर ठहर गए
कभी ऐसा वक़्त भी आएगा ज़िन्दगी का
सोचा नहीं था तू इतना दूर चला जायेगा
मैं तनहा खड़ी रह जाऊँगी
मेरे सामने किसी और का तू हो जायेगा
आज जब बरसों के बाद मिला है तू
आंसू और ख़ुशी में एक तूफ़ान से छिड़ा है
कौन पहले बरसे कुछ समझ न आये
दोनों ने ही इस पल का सदियों इंतज़ार किया है
जी करता है एक आज बस कोई
तेरी मेरी मजबूरी न रहे
करे दिल खोल के बात हम
मेरे दिल की तेरे दिल से दूरी न रहे
कल फिर चले जाना है तुम को अजनबी रास्ते
आज जो साथ हो तो मेरे गमो को अपना सहारा दे जाओ
कौन जाने अब किस मोड़ पर मिलो तुम आगे
उस मोड़ तक सांसें लेने का बहाना दे जाओ
वादे कितने करे थे एक दुसरे से
सारे आज फिर आँखों के सामने तैर गए
बरसों से रोक रखे थे जो आंसू पलकों पर आ कर ठहर गए
कभी ऐसा वक़्त भी आएगा ज़िन्दगी का
सोचा नहीं था तू इतना दूर चला जायेगा
मैं तनहा खड़ी रह जाऊँगी
मेरे सामने किसी और का तू हो जायेगा
आज जब बरसों के बाद मिला है तू
आंसू और ख़ुशी में एक तूफ़ान से छिड़ा है
कौन पहले बरसे कुछ समझ न आये
दोनों ने ही इस पल का सदियों इंतज़ार किया है
जी करता है एक आज बस कोई
तेरी मेरी मजबूरी न रहे
करे दिल खोल के बात हम
मेरे दिल की तेरे दिल से दूरी न रहे
कल फिर चले जाना है तुम को अजनबी रास्ते
आज जो साथ हो तो मेरे गमो को अपना सहारा दे जाओ
कौन जाने अब किस मोड़ पर मिलो तुम आगे
उस मोड़ तक सांसें लेने का बहाना दे जाओ
Wednesday, August 11, 2010
Dedicated to Maa...
बचपन से ही एक खुशबू को जाना है
माँ के आँचल को बहुत करीब से पहचाना है
जिसने हर शाम मेरे माथे को पोंछा
और गर्मी की रातों को पंखा झला
माँ की ममता भी बेमिसाल होती है
खुद थके होने पर भी मुझे सुला कर सोती है
मेरे सपनों में वो न जाने कहाँ से परियों को ले कर आती थी
आँख बंद करते ही दूर देस की सैर कराती थी
मेरी एक आहट पर वो दौड़ी आती थी
सब कुछ छोड़ कर मेरी देखरेख में लग जाती
मेरी फ़िक्र करने में उसे अपना ध्यान न रहता
कैसे कोई भूल सकता है ममता की मूरत का ऐसा चेहरा
आज जब मैं थोड़ी इस आँचल के बाहर कदम रख चली हूँ
थोड़ी लडखडाती थोड़ी कंपकपाती बड़ चली हूँ
फिर भी जब कभी दुनिया से मुझे डर लगता है
सिर्फ एक उसी आँचल में मुझे आज भी घर मिलता है
माँ के आँचल को बहुत करीब से पहचाना है
जिसने हर शाम मेरे माथे को पोंछा
और गर्मी की रातों को पंखा झला
माँ की ममता भी बेमिसाल होती है
खुद थके होने पर भी मुझे सुला कर सोती है
मेरे सपनों में वो न जाने कहाँ से परियों को ले कर आती थी
आँख बंद करते ही दूर देस की सैर कराती थी
मेरी एक आहट पर वो दौड़ी आती थी
सब कुछ छोड़ कर मेरी देखरेख में लग जाती
मेरी फ़िक्र करने में उसे अपना ध्यान न रहता
कैसे कोई भूल सकता है ममता की मूरत का ऐसा चेहरा
आज जब मैं थोड़ी इस आँचल के बाहर कदम रख चली हूँ
थोड़ी लडखडाती थोड़ी कंपकपाती बड़ चली हूँ
फिर भी जब कभी दुनिया से मुझे डर लगता है
सिर्फ एक उसी आँचल में मुझे आज भी घर मिलता है
Tuesday, August 10, 2010
चुप रह कर भी कितना कुछ बोलती हैं
तेरी आँखें ही दिल के सारे राज़ खोलती हैं
कोई कहता है नाराज़ है तू मुझसे
तेरी आँखें सारी ख़ामोशी तोड़ती हैं
माना तुमको हमसे है शिकवे हजारों
पर रूठ कर चले न जाना तुम
पास रह कर सारी शिकायतें करना
हो न जाना कभी नज़रों से गुम
तुम कहती हो मुझे बेवफा तो वो ही सही
हमने वफ़ा हर उस कतरे से की है
जिसे कभी मेरे आँगन में
तेरे होने का एहसास था
तेरी आँखें ही दिल के सारे राज़ खोलती हैं
कोई कहता है नाराज़ है तू मुझसे
तेरी आँखें सारी ख़ामोशी तोड़ती हैं
तेरी आँखों का सूनापन हो
या तेरे होंठो पर फीकी मुस्कान
तेरी हर सांस में खालीपन
मैं हर पल महसूस करता हूँ
माना तुमको हमसे है शिकवे हजारों
पर रूठ कर चले न जाना तुम
पास रह कर सारी शिकायतें करना
हो न जाना कभी नज़रों से गुम
तुम कहती हो मुझे बेवफा तो वो ही सही
हमने वफ़ा हर उस कतरे से की है
जिसे कभी मेरे आँगन में
तेरे होने का एहसास था
Monday, August 9, 2010
कितना चाहा था न ऐसी भूल करे हम
जाने कैसे ये दिल्लगी कर दी
जो किसी और कि ज़िन्दगी से था जुड़ा
उसी से दिल लगाने कि गलती कर दी
अब दामन में आये हैं जो आंसू
तो आंसूओं को मुस्कुराना सिखा देंगे
आँखों में आंसू आ भी जाये तो
इन्हें पानी का नाम दे कर बहा देंगे
लोग कहते हैं मोहब्बत में दर्द मिलता है
मगर हम जानते हैं चंद लोगों को इश्क नसीब में मिलता है
ये दर्द भी मीठा जान पड़ता है
जब किसी अपने हम कदम से मिलता है
जाने कैसे ये दिल्लगी कर दी
जो किसी और कि ज़िन्दगी से था जुड़ा
उसी से दिल लगाने कि गलती कर दी
अब दामन में आये हैं जो आंसू
तो आंसूओं को मुस्कुराना सिखा देंगे
आँखों में आंसू आ भी जाये तो
इन्हें पानी का नाम दे कर बहा देंगे
लोग कहते हैं मोहब्बत में दर्द मिलता है
मगर हम जानते हैं चंद लोगों को इश्क नसीब में मिलता है
ये दर्द भी मीठा जान पड़ता है
जब किसी अपने हम कदम से मिलता है
Sunday, August 8, 2010
कब से किसी अंजाने के ख्वाब सजाये बैठी हूँ
बिन देखे उसको दिल में बसाये बैठी हूँ
कैसा होगा वो ये जानती नहीं मैं
पर वो मिलेगा एक दिन ये मानती हूँ मैं
उसकी आवाज़ कैसी होगी ये जानती नहीं मैं
पर उसकी बातों में मेरी बातें होंगी शामिल
उसकी आँखों के रंग का कुछ पता नहीं मुझको
पर उसके ख्वाबों में मेरी सूरत रहेगी
ये नहीं जानती मैं वो कैसा दिखता होगा
पर जब वो दिखेगा तब और कुछ देखने की फुर्सत कहाँ होगी
कुछ पता नहीं वो कहाँ रहता होगा क्या करता होगा
बस इतना यकीन है वो अपनी बाहों में मुझे महफूज़ रखेगा
खुदा करे वो मेहरबान दिन जल्दी से आ जाये
जब ये अनजाना शख्स मेरी ज़िन्दगी बदल जाये
बिन देखे उसको दिल में बसाये बैठी हूँ
कैसा होगा वो ये जानती नहीं मैं
पर वो मिलेगा एक दिन ये मानती हूँ मैं
उसकी आवाज़ कैसी होगी ये जानती नहीं मैं
पर उसकी बातों में मेरी बातें होंगी शामिल
उसकी आँखों के रंग का कुछ पता नहीं मुझको
पर उसके ख्वाबों में मेरी सूरत रहेगी
ये नहीं जानती मैं वो कैसा दिखता होगा
पर जब वो दिखेगा तब और कुछ देखने की फुर्सत कहाँ होगी
कुछ पता नहीं वो कहाँ रहता होगा क्या करता होगा
बस इतना यकीन है वो अपनी बाहों में मुझे महफूज़ रखेगा
खुदा करे वो मेहरबान दिन जल्दी से आ जाये
जब ये अनजाना शख्स मेरी ज़िन्दगी बदल जाये
Saturday, August 7, 2010
Mera Bachpan
याद आ रहे हैं आज मुझे
बचपन के वो दिन
कितनी प्यारी बातें थी
कितने प्यारे प्यारे दिन
माँ अपने हाथों से खाना मुझे खिलाती थी
पापा रोज़ शाम को आ कर मुझे गले से लगाते थे
सबकी लाडली थी मैं घर में
छमछम पायल पहने आँगन में दौड़ लगाती
आज भी याद है मुझे लड़कपन की छोटी छोटी बातें
कैसे मेरे ज़िद करने पे दादाजी लहंगा लाते थे
दादी मुझे कहानियाँ सुनाती
बड़ीमम्मी मुझे गोद में ले कर लोरी गाती
वो हर बारिश के मौसम में
मैं और भाई कागज़ की नाव बनाते
और गलियों में बह रहे पानी में
नाव बहाने की रेस लगाते
आज भी याद करती हूँ मैं
लोग मुझसे मिलने आते
चीनी, सुम्मी, सोफ्टी जैसे
कितने ही नाम दे जाते
दूर चला गया है वो बचपन
पास हैं सिर्फ वो मीठी यादें
वो आँगन में बजती पायल की
धुंधली सी है एक परछाईं
बचपन के वो दिन
कितनी प्यारी बातें थी
कितने प्यारे प्यारे दिन
माँ अपने हाथों से खाना मुझे खिलाती थी
पापा रोज़ शाम को आ कर मुझे गले से लगाते थे
सबकी लाडली थी मैं घर में
छमछम पायल पहने आँगन में दौड़ लगाती
आज भी याद है मुझे लड़कपन की छोटी छोटी बातें
कैसे मेरे ज़िद करने पे दादाजी लहंगा लाते थे
दादी मुझे कहानियाँ सुनाती
बड़ीमम्मी मुझे गोद में ले कर लोरी गाती
वो हर बारिश के मौसम में
मैं और भाई कागज़ की नाव बनाते
और गलियों में बह रहे पानी में
नाव बहाने की रेस लगाते
आज भी याद करती हूँ मैं
लोग मुझसे मिलने आते
चीनी, सुम्मी, सोफ्टी जैसे
कितने ही नाम दे जाते
दूर चला गया है वो बचपन
पास हैं सिर्फ वो मीठी यादें
वो आँगन में बजती पायल की
धुंधली सी है एक परछाईं
Friday, August 6, 2010
I know the joy of being with you
Just because i have felt the pain of staying away from you
I realize the value that this million dollar smile adds to my face
Just because i have shed uncountable tears on this face
I can enjoy the romance created by the rain
Just because i have had sufficient dry days in life
I can feel the new aroma around me this spring
Just because the autumn stayed longer than usual
I really really know what Love does to me
Just because i have seen a lot of hatred around me
Just because i have felt the pain of staying away from you
I realize the value that this million dollar smile adds to my face
Just because i have shed uncountable tears on this face
I can enjoy the romance created by the rain
Just because i have had sufficient dry days in life
I can feel the new aroma around me this spring
Just because the autumn stayed longer than usual
I really really know what Love does to me
Just because i have seen a lot of hatred around me
Thursday, August 5, 2010
मेरे होंठो पर जो मुस्कान आज है
तेरे साथ बिताये दो पलों का राज़ है
आँखों में अजब सी जो चमक आज है
वो तेरे पास होने का ही एहसास है
जब से तुम को आज मिली हूँ मैं
सब कहते हैं बदली बदली सी हूँ मैं
खोयी खोयी सी हूँ तेरे ख्यालों में
अपनी ही धुन में हो गयी हूँ जैसे गुम
ये जो आज नयी उमंग है
मेरे दिल की ये जो तरंग है
तेरे प्यार का ही ये रंग है
जो अब हर पल मेरे संग है
नहीं पता मुझे ये इश्क का एहसास कैसा होता है
पर लगता है अब जैसे ये बिलकुल ऐसा होता है
उड़ती रहती हूँ अपने ही ख्यालों में
ख्वाबों में तुझे ढूँढती रहती हूँ
तेरे साथ बिताये दो पलों का राज़ है
आँखों में अजब सी जो चमक आज है
वो तेरे पास होने का ही एहसास है
जब से तुम को आज मिली हूँ मैं
सब कहते हैं बदली बदली सी हूँ मैं
खोयी खोयी सी हूँ तेरे ख्यालों में
अपनी ही धुन में हो गयी हूँ जैसे गुम
ये जो आज नयी उमंग है
मेरे दिल की ये जो तरंग है
तेरे प्यार का ही ये रंग है
जो अब हर पल मेरे संग है
नहीं पता मुझे ये इश्क का एहसास कैसा होता है
पर लगता है अब जैसे ये बिलकुल ऐसा होता है
उड़ती रहती हूँ अपने ही ख्यालों में
ख्वाबों में तुझे ढूँढती रहती हूँ
Wednesday, August 4, 2010
बारिश की पहली बूँदें
महका गयी मेरा घर आँगन
खिल उठा मेरा तन मन
मिल गया धरती को नया जीवन
छमछम गिरती बारिश में
मिट्टी की गीली खुशबू ने
सब कुछ आज हसीं कर दिया
मेरे दिल में नया रस भर दिया
पौधों में हरियाली छाई
सुन्दर रंग रंगीली कलियाँ खिल आई
मोर बागों में नाचने लगे
जैसे अम्बर पे बादल छाने लगे
नहीं समझ पाई मैं अब तक
कैसा है बारिश का जादू
भूल जाती हूँ सारे दुःख दर्द
मन पे नहीं रह पाता काबू
काश की ये बादल यूँही
जम कर सारे बरसे
धरती की प्यास बुझाये
लोगों में खुशहाली लाये
Tuesday, August 3, 2010
आज से पहले तो मैं कभी शायर न था
टूटे हुए शब्दों को यूँ जोड़ता न था
क्यों आज फिर मैं ग़ज़ल लिख रहा हूँ
तेरे खयालों में डूबकर रात दिन लिख रहा हूँ
तेरी गहरी आँखें कैसे झील के जैसी लगने लगी
तेरे चेहरे का नूर कैसे सूरज की किरण बन गया
आज से पहले ये कभी न हुआ था
तू कैसे मुझे खुदा की कोई मूरत लगने लगी
टूटे हुए शब्दों को यूँ जोड़ता न था
क्यों आज फिर मैं ग़ज़ल लिख रहा हूँ
तेरे खयालों में डूबकर रात दिन लिख रहा हूँ
कल रात तू चुपके से चाँद ढले आ गयी
तेरी नजाकत देख कर चांदनी भी शर्मा गयी
तेरे आँचल को समेट कर चाँद बादल में जा छुपा
तेरा ये रूप देखकर शायद मैं शायर बना
तेरी गहरी आँखें कैसे झील के जैसी लगने लगी
तेरे चेहरे का नूर कैसे सूरज की किरण बन गया
आज से पहले ये कभी न हुआ था
तू कैसे मुझे खुदा की कोई मूरत लगने लगी
Monday, August 2, 2010
दो चार बातें कह दिया करो
क्या जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाये
कुछ मेरे दिल की आवाज़ सुन लिया करो
क्या जाने कब मेरा नाम खो जाये
पल दो पल को मिले हैं खुशियों के लम्हे
तेरी बाहों की पनाहों में खो जाना चाहती हूँ
कोई जुस्तजू न रही अब कुछ और पाने की
ऐसे ही सारी उम्र अब बिता देना चाहती हूँ
मेरी हर ख़ुशी को तेरे दर सजाना चाहती हूँ
जब तक हूँ तुझे इस कदर हँसाना चाहती हूँ
नहीं यकींन ज़िन्दगी कब तक साथ निभाए
तेरे इश्क में टूट कर खो जाना चाहती हूँ
क्या जाने कब ज़िन्दगी की शाम हो जाये
कुछ मेरे दिल की आवाज़ सुन लिया करो
क्या जाने कब मेरा नाम खो जाये
पल दो पल को मिले हैं खुशियों के लम्हे
तेरी बाहों की पनाहों में खो जाना चाहती हूँ
कोई जुस्तजू न रही अब कुछ और पाने की
ऐसे ही सारी उम्र अब बिता देना चाहती हूँ
मेरी हर ख़ुशी को तेरे दर सजाना चाहती हूँ
जब तक हूँ तुझे इस कदर हँसाना चाहती हूँ
नहीं यकींन ज़िन्दगी कब तक साथ निभाए
तेरे इश्क में टूट कर खो जाना चाहती हूँ
Sunday, August 1, 2010
आज तुझे ख़त लिखने बैठी बहुत सोच समझ कर मैं
पर कागज़ कलम हाथ में लेकर वापस खो गयी मैं
कितनी बातें कहने को थी
जाने कहाँ गुम हो गयी सारी
कुछ याद न रहा मन को एक पल
खामोश रह गयी मैं
कागज़ के हर कोने पर तेरा नाम लिख दिया
जितना कुछ कहने को था उस नाम में सब कह दिया
हो सके तो मेरे इस ख़त का जवाब तुम लिख देना
कुछ न कहने को हो फिर भी अपना नाम तुम लिख देना
तेरे नाम से ही ज़िन्दगी चलती है, तेरे नाम की साँसे गिनती हूँ
तेरे एक ख़त से साँसे ये कुछ और दिन चल जाएगी
पर कागज़ कलम हाथ में लेकर वापस खो गयी मैं
कितनी बातें कहने को थी
जाने कहाँ गुम हो गयी सारी
कुछ याद न रहा मन को एक पल
खामोश रह गयी मैं
कागज़ के हर कोने पर तेरा नाम लिख दिया
जितना कुछ कहने को था उस नाम में सब कह दिया
हो सके तो मेरे इस ख़त का जवाब तुम लिख देना
कुछ न कहने को हो फिर भी अपना नाम तुम लिख देना
तेरे नाम से ही ज़िन्दगी चलती है, तेरे नाम की साँसे गिनती हूँ
तेरे एक ख़त से साँसे ये कुछ और दिन चल जाएगी
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